मित्रो,वैसे तो अक्टूबर,1984 में स्कूल के वक़्त एक एकल आशु नाट्य-प्रस्तुति से हमारी नाट्य-यात्रा का आरम्भ माना जा सकता है | इस के बाद 10 फरवरी,1990 में भवानी प्रसाद मिश्र की एकांकी 'दो कलाकार' का निर्देशन और उस में अभिनय किया | मगर ठोस रूप में यह आरम्भ माना जाना चाहिए वर्ष 1994 से | 21 सितम्बर को स्वदेश दीपक के लिखे नाटक 'कोर्ट मार्शल' के कैप्टन बिकाश राय की भूमिका से यह आरम्भ हुआ | वर्ष 1994 से ही विधिवत नाट्य-लेखन की शुरुआत हुई | तब लिखा गया था---'अजगर की लीक',जिसे बाद में 'पिशाच-लीला' कर दिया गया | वर्ष 1995-96 से जवाहर कला केंद्र,जयपुर द्वारा 'प्रदेश-स्तरीय लघु नाट्य-लेखन प्रतियोगिता' आरम्भ की गयी | तब हमारा लिखा नाटक पहली बार पुरस्कृत हुआ | तब से शुरू हुआ यह सिलसिला अब तक चला आ रहा है | वर्ष 2000-01,2001-02,2002-03 और 2007-08 में यह प्रतियोगिता हुई नहीं |10 वर्षों तक युवा वर्ग में पुरस्कृत होने के बाद इस बार प्रौढ़ वर्ग में पुरस्कार मिला है | अरे भई,प्रौढ़ से चौंकिए मत | हमारी उम्र कोई इतनी भी नहीं हो गयी है कि प्रौढ़ कहलाएँ;मगर क्या करें,ज.क.केंद्र का नियम ही यह है कि 35 पार होते ही प्रौढ़ वर्ग शुरू | प्रभु-कृपा से इस प्रतियोगिता में लगातार 11 वर्षों तक पुरस्कृत होने वाले के रूप में हमारे नाम प्रदेश के इकलौते नाटककार होने का श्रेय है | तो चलिए,एक नज़र डाल लीजिए ज.क.केंद्र की ओर से मिले इन पुरस्कारों पर---
वर्ष नाटक पुरस्कार
1995-96 पिशाच-लीला ( अजगर की लीक ) सांत्वना
1996-97 काश!!! ( एक थी शिवानी ) सांत्वना
1997-98 यह मौसम रीत चुका है ( उगे हुए अँधेरे झूठ नहीं बोलते ) द्वितीय
1998-99 अमृतघट प्रथम
1999-2000 लाल लोई रा छांटा तृतीय
2003-04 माई री ! मैं का से कहूँ उर्फ़ पीलू सांत्वना
2004-05 उम्र नींद-सी क्यूं नहीं होती द्वितीय
2005-06 इन्द्रनीलमणि उर्फ़ हादसों की बरसियाँ होती हैं,जयन्तियाँ नहीं सांत्वना
2006-07 ललाटों के तिलक वाशबेसिन में नहीं धोये जाते सांत्वना
2008-09 मामेकं शरणं व्रज तृतीय
हमारे लिखे नाटकों की एक झलक इस प्रकार है---
(अ) हिंदी नाटक
(क) मंचीय नाटक:---
(1) अमानुषी गंध (2) काश !!! (3) पिशाच-लीला (4) यह मौसम रीत चुका है (5)यह है हिन्दुस्तानी नारी (6) अमृतघट (7)माई री ! मैं का से कहूँ उर्फ़ पीलू (8)उम्र नींद-सी क्यों नहीं होती (9)वाह रे देश के कर्णधार ! (10)इन्द्र नील मणि उर्फ़ हादसों की बरसियाँ होती हैं,जयन्तियाँ नहीं (11)ललाटों के तिलक वाशबेसिन में नहीं धोये जाते (12)मामेकं शरणं व्रज (13)खेलें खेल जिनावर का
(ख) नुक्कड़ नाटक:---(1)मेरी आवाज़ सुनो (2)सुनो भाई साधो !
(ग) रेडियो नाटक:---प्रेत बोलते हैं
(घ) नाट्य-रूपांतरण:---आलम शाह खान की कहानी 'एक और मौत' का 'क्षुधाप्रेत' के नाम से
(आ) (राजस्थानी नाटक)
(क)मंचीय नाटक:---
(1)युद्धं शरणं गच्छामि (2)ऐक ही शिवानी (3)ऊग्योड़ा अंधारा कूड़ नीं बोलै (4)अजगर री लीक (5) लाल लोई रा छांटा
(इ)प्रकाशित पुस्तकें
(1) तीन नूवां नाटक ( राजस्थानी नाटक-संग्रह )
(2)युद्धं शरणं गच्छामि
(3)अमानुषी गंध
(ई)शीघ्र प्रकाश्य पुस्तकें
(1)मौहब्बतों का क़र्ज़ ( ग़ज़ल-नज़्म-संग्रह )
(2)शाम फिर क्यूं उदास है दोस्त (ग़ज़ल-नज़्म-संग्रह)
(उ)अभिनय:---लगभग डेढ़ दर्ज़न नाटकों में
(ऊ)निर्देशन:---छह नाटकों का
हमारे अधिकतर नाटकों का मंचन हो चुका है | हाल ही में पुरस्कृत नाटक 'मामेकं शरणं व्रज' का भी मंचन २७ फ़रवरी को किया गया | उसी अवसर पर हमें ज.क.केंद्र के कार्यक्रम-अधिकारी श्री संदीप र. मदान के हाटों पुरस्कार भी प्रदान किया गया | हमारे एकपत्रीय नाटक 'यह मौसम रीत चुका है' के तो अब तक 21 शो हो चुके हैं | यह नाटक वर्ष 1998 सोलन (हि.प्र.) में अखिल भारतीय नाट्य-प्रतियोगिता 'अभिव्यक्ति-98' में 'सर्वश्रेष्ठ नाट्यालेख' का पुरस्कार प्राप्त कर चुका है |
'राजस्थानी भाषा के पहले एकपात्रीय नाटक' का श्रेय हमारे नाटक 'ऊग्योड़ा अंधारा कूड़ नीं बोलै' को प्राप्त है |हमारे लिखे नाटकों में छः नाटक एकपात्रीय हैं | हमें एकपात्रीय नाटकों का का विशेषज्ञ माना जाता है |
मित्रो,समयाभाव के कारण अब नाट्य-जगत में पहले जितनी सक्रियता नहीं रही,मगर लेखन के जरिये अब भी जुड़े हुए हैं | ,,, आज आप से यह चर्चा कर ली | कर के अच्छा लगा | अपनों के साथ ख़ुशियाँ बाँटने से बढ़ती हैं | फिर किसी दिन कुछ अलग मूड होगा तो अपने शायर-कवि और मंच-संचालक के रूप की भी चर्चा करेंगे | ......... आज बस इतना ही | अब आज के आनंद की जय | ............. जय श्री राम |
1995-96 पिशाच-लीला ( अजगर की लीक ) सांत्वना
1996-97 काश!!! ( एक थी शिवानी ) सांत्वना
1997-98 यह मौसम रीत चुका है ( उगे हुए अँधेरे झूठ नहीं बोलते ) द्वितीय
1998-99 अमृतघट प्रथम
1999-2000 लाल लोई रा छांटा तृतीय
2003-04 माई री ! मैं का से कहूँ उर्फ़ पीलू सांत्वना
2004-05 उम्र नींद-सी क्यूं नहीं होती द्वितीय
2005-06 इन्द्रनीलमणि उर्फ़ हादसों की बरसियाँ होती हैं,जयन्तियाँ नहीं सांत्वना
2006-07 ललाटों के तिलक वाशबेसिन में नहीं धोये जाते सांत्वना
2008-09 मामेकं शरणं व्रज तृतीय
हमारे लिखे नाटकों की एक झलक इस प्रकार है---
(अ) हिंदी नाटक
(क) मंचीय नाटक:---
(1) अमानुषी गंध (2) काश !!! (3) पिशाच-लीला (4) यह मौसम रीत चुका है (5)यह है हिन्दुस्तानी नारी (6) अमृतघट (7)माई री ! मैं का से कहूँ उर्फ़ पीलू (8)उम्र नींद-सी क्यों नहीं होती (9)वाह रे देश के कर्णधार ! (10)इन्द्र नील मणि उर्फ़ हादसों की बरसियाँ होती हैं,जयन्तियाँ नहीं (11)ललाटों के तिलक वाशबेसिन में नहीं धोये जाते (12)मामेकं शरणं व्रज (13)खेलें खेल जिनावर का
(ख) नुक्कड़ नाटक:---(1)मेरी आवाज़ सुनो (2)सुनो भाई साधो !
(ग) रेडियो नाटक:---प्रेत बोलते हैं
(घ) नाट्य-रूपांतरण:---आलम शाह खान की कहानी 'एक और मौत' का 'क्षुधाप्रेत' के नाम से
(आ) (राजस्थानी नाटक)
(क)मंचीय नाटक:---
(1)युद्धं शरणं गच्छामि (2)ऐक ही शिवानी (3)ऊग्योड़ा अंधारा कूड़ नीं बोलै (4)अजगर री लीक (5) लाल लोई रा छांटा
(इ)प्रकाशित पुस्तकें
(1) तीन नूवां नाटक ( राजस्थानी नाटक-संग्रह )
(2)युद्धं शरणं गच्छामि
(3)अमानुषी गंध
(ई)शीघ्र प्रकाश्य पुस्तकें
(1)मौहब्बतों का क़र्ज़ ( ग़ज़ल-नज़्म-संग्रह )
(2)शाम फिर क्यूं उदास है दोस्त (ग़ज़ल-नज़्म-संग्रह)
(उ)अभिनय:---लगभग डेढ़ दर्ज़न नाटकों में
(ऊ)निर्देशन:---छह नाटकों का
हमारे अधिकतर नाटकों का मंचन हो चुका है | हाल ही में पुरस्कृत नाटक 'मामेकं शरणं व्रज' का भी मंचन २७ फ़रवरी को किया गया | उसी अवसर पर हमें ज.क.केंद्र के कार्यक्रम-अधिकारी श्री संदीप र. मदान के हाटों पुरस्कार भी प्रदान किया गया | हमारे एकपत्रीय नाटक 'यह मौसम रीत चुका है' के तो अब तक 21 शो हो चुके हैं | यह नाटक वर्ष 1998 सोलन (हि.प्र.) में अखिल भारतीय नाट्य-प्रतियोगिता 'अभिव्यक्ति-98' में 'सर्वश्रेष्ठ नाट्यालेख' का पुरस्कार प्राप्त कर चुका है |
'राजस्थानी भाषा के पहले एकपात्रीय नाटक' का श्रेय हमारे नाटक 'ऊग्योड़ा अंधारा कूड़ नीं बोलै' को प्राप्त है |हमारे लिखे नाटकों में छः नाटक एकपात्रीय हैं | हमें एकपात्रीय नाटकों का का विशेषज्ञ माना जाता है |
मित्रो,समयाभाव के कारण अब नाट्य-जगत में पहले जितनी सक्रियता नहीं रही,मगर लेखन के जरिये अब भी जुड़े हुए हैं | ,,, आज आप से यह चर्चा कर ली | कर के अच्छा लगा | अपनों के साथ ख़ुशियाँ बाँटने से बढ़ती हैं | फिर किसी दिन कुछ अलग मूड होगा तो अपने शायर-कवि और मंच-संचालक के रूप की भी चर्चा करेंगे | ......... आज बस इतना ही | अब आज के आनंद की जय | ............. जय श्री राम |
बांटते रहिये ऐसे ही खुशियाँ...शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएं"अरे, वाह-वाह जय श्री राम...
जवाब देंहटाएं"
amitraghat.blogspot.com