अंक ज्योतिषी, अंग ज्योतिषी, राजनीतिक विश्लेषक-सलाहकार, नाटककार, शायर, अकादमिक, सम्प्रेरक वक्ता

शनिवार, 30 जनवरी 2010

ज्योतिष के व्यावसायिक स्वरूप पर आपत्ति क्यों ?

जय श्री राम ............ | आदरणीय मित्रो,आज हम आप के एक बार फिर रू-ब-रू हैं | बात तो एक बार फिर से दिल की ही है | हमारे एक शुभचिंतक दीपक सक्सेना ने एक बात रखी है | इन का कहना है-"आप भी तो पैसे ले कर अपनी विद्या का मिसयूज़ ही कर रहे हैं |" बात दिल को लग गयी | ......... अगर हम या कोई भी व्यक्ति ज्योतिष को व्यावसायिक रूप से करता है तो इस में ग़लत क्या है ? यह हमारा पूर्णकालिक व्यवसाय है और हमें इस बात पर गर्व है | अपने काम या व्यवसाय पर शर्मिंदगी तो उन लोगों को होनी चाहिए,जो कि इस में बेईमानी करते हैं | हम ने ज्योतिष को पूर्णकालिक समर्पण भाव से अपना रखा है | एक बात बताइए | आप अन्य किसी भी जगह सेवा/परामर्श लेते समय उन का निर्धारित शुल्क अदा करते हैं,तो फिर ज्योतिषी को उस का परामर्श शुल्क अदा करने के समय कांपने क्यों लगते हैं ? हमारा घर क्या कोई सामाजिक संस्था या सरकार चलाती है ? ज्योतिष सम्बन्धी हमारे शोधकार्य का ख़र्च कौन उठाता है ?  आप की यह मुफ़्तखोरी की आदत कब छूटेगी ? हम जो समय और मेहनत किसी केस के विश्लेषण में लगते हैं,अगर उस का सिला चाहते हैं तो इस में कुछ भी अनुचित नहीं है | डाक्टरों को मोटी-मोटी फ़ीस देकर भी आप का केस वहाँ पिट जाता है | आप अपना-सा मुँह ले कर वहाँ से लौट आते हैं,मगर ज्योतिषी को उस की थोड़ी-सी फ़ीस भी आप से दी नहीं जाती | वहाँ आप फटाक से काम की गारंटी मांग लेते हैं | अपने इस नज़रिए को बदलिए | ज्योतिषी कोई आसमान से उतरा जीव नहीं है | यह भी आप ही के बीच का प्राणी है | ज्योतिषी को उस की फ़ीस अदा करनी सीखिए | हम ने तो अपने समस्त व्यावसायिक प्रावधानों के बीच नि:शुल्क परामर्श के प्रावधान भी बना रखे है,जिन्हें आप हमारे ब्लॉगों पर पढ़ सकते हैं | आप उन का पालन कर उस दायरे में नि:शुल्क परामर्श भी प्राप्त कर सकते हैं | यदि हमारी सेवा लेना चाहते हैं तो यह तो आप को करना ही होगा | यदि आप इतना भी नहीं कर सकते तो हमें नि:शुल्क परामर्श के लिए परम क्षमा करें | ...अब आज के आनंद की जय | ...........जय श्री राम |

2 टिप्‍पणियां:

  1. हाँ गणेशजी, सही कहा, ज्योतिषी भी इंसान.
    लेकिन इस रोपये ने सबको बना दिया हैवान.
    बना दिया है हैवान, दुःख देते हैं परस्पर.
    देव भाव तो दूर, मनुज पशु से बदतर.
    कह साधक कवि, सरस्वती की दासी लक्षमी.
    पैसा ना माँगे ज्योतिषी... हाँ गणेशजी!
    sahiasha.wordpress.com

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