जय श्री राम ............| आदरणीय मित्रो, आज बातचीत के क्रम में सबसे पहले एक यह ख़ास बात कर ली जाए| बाक़ी बातें बाद में कर लेंगे|
कल बहुत शोर पैदा हुआ कि वैज्ञानिकों ने 'ब्रह्म कण' की खोज कर ली है| आज के सभी अखबार इसी से रंगे पड़े हैं| बहुत उत्साह के स्वर में यह कहा जा रहा है कि यह सृष्टि ईश्वर ने नहीं बनायी है| यह मानव-निर्मित है| अब ज़रा यह देखें कि अंक ज्योतिष इस बारे में क्या दृष्टिकोण रखती है|
समस्त अंक ज्योतिष प्रकट रूप में 1 से लेकर 9 अंक में समाहित है या इन पर आधारित है| किन्तु यहाँ एक अद्भुत बात पर ध्यान दिया जाना अत्यंत आवश्यक है| इन 9 अंकों के अलावा एक और अंक होता है, जिसे अंक ज्योतिषीय गणनाओं में प्रायः प्रयुक्त नहीं किया जाता| यह अंक है-0 (शून्य)| अंक ज्योतिष में इसे 'महाशून्य' कहा जाता है| यह 'महाब्रह्मांड' का प्रतीक है| जब ब्रह्माण्ड से सम्बन्धित सूक्ष्म विश्लेषण की बात आती है तो इस महाशून्य की शरण में जाना पड़ता है| गणनाओं में इसकी स्थिति की विवेचना से बहुत कुछ विश्लेषित किया जा सकता है| इस 'ब्रह्म कण' की खोज की प्रक्रिया में भी इस महाशून्य की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है| यह महाशून्य सीधे-सीधे ईश्वरीय सत्ता से जोड़ता है| अंक 1 से 9 तक की भूमिका प्रायः जागतिक यानि पृथ्वी के सन्दर्भ में गणनाओं तक सीमित रहती है| इन 9 अंकों के साथ महाशून्य को संलग्न करते ही यह दायरा ब्रह्माण्ड-सन्दर्भ में परिवर्तित हो जाता है|
हम यहाँ हमारे पवित्र वेदों की बात नहीं ले रहे हैं, हालांकि हमारे वेदों ने तो यह सब कभी का कह रखा है, जो आज 'खोज लेने' का दावा किया जा रहा है| ईस्वी सन (यहाँ ऑनलाइन फोनेटिक टाइप की विवशता के कारण 'सन' का ह्लंत हम नहीं लिख पा रहे हैं, आशा है आप क्षमा करेंगे) की पहली सहस्राब्दी अंक 1 (सूर्य) की थी| उसके बाद दूसरी सहस्राब्दी अंक 2 (चन्द्र) की थी| इस दूसरी सहस्राब्दी के 7 वें और कुल जमा 197 वें दशक में इस परिकल्पना का जन्म हुआ| यहं अंक 7 व अंक 8 की उपस्थिति है| परिकल्पना के जन्म का वर्ष है-1964| इसका मूलांक बना-2, जिसका वृहदंक बना-20| अब ध्यान दिए जाने वाली बात यह है कि इन्हें महाशून्य से पहले एक क्रम में जमा लेने पर क्या रूप बनता है, देखिए-202 (0) यानि वर्ष 2020| इसका तात्पर्य यह हुआ कि जब वर्ष 2020 से आगे के समय यानी उसके बाद के वर्षों में इस दिशा ('ब्रह्म कण' को खोजने कि दिशा) में बड़ी सफलता मिल सकेगी| उसके पहले अंक 7 व अंक 8 की प्रधानता के कारण जो भी परिणाम पाने के दावे किए जाएँ, मगर वे सब के सब इस दिशा में 'लेशमात्र' ही सिद्ध होंगे, बड़े नहीं| अब एक और दिलचस्प बात भी कर ली जाए| वर्ष 2012 में इस मामले में खोज में 'कुछ प्रगति' की बात भी कहाँ से आई? तो देखिए कि हमने वर्ष की स्थापना के लिए जो दो अंक बनाये हैं, उनके अंतरिम स्वरूप में पहली सहस्राब्दी के प्रतिनिधि अंक १ को स्थान दीजिए, सीधे-सीधे वर्ष 20-1-2 यानि 2012 बनता है| इसी कारण इस वर्ष यह विशेष गतिविधि हुई है|
इस सारी प्रक्रिया में दिनांक 04-07-2012 की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता| इसका मूलांक 4 व भाग्यांक 7 हुआ| अंक 4 पितृ दोष (रक्त) का है और अंक 7 भी रक्त का है| अनुसन्धान और शोध के परिप्रेक्ष्य में अंक 7 अवधारणात्मक दुर्बलता या निष्फलता का है| अतः इन दोनों अंकों की युति इस परियोजना के परिणाम की सफलता के बारे में यह न्यूनता बताती है| अभी चलित का अंक है-2 व 7| इन स्त्री अंकों की अंक 4 व अंक 7 के साथ युति पूर्वोक्त निष्कर्षों के परिमाण में वृद्धि करती है| दिनांक 04-07-2012 को वार बुधवार था, जिसका अंक है-5| पूर्वोल्लेखित युतियों के साथ इसका युग्मन धुंध, भ्रम और अस्थिरता बताता है| अतः इस दिनांक को वैज्ञानिकों ने जिस सफलता की प्राप्ति कही है, वह भ्रम या अनिश्चय की स्थिति हो सकती है या आगे जाकर वैज्ञानिकों को अपनी इस सफलता की धरना या स्वरूप में परिवर्तन भी करना पड़ सकता है| इसलिए अभी की सफलता को कोई बहुत बड़ी या उल्लेखनीय मन लेना बहुत जल्दबाज़ी रहेगी| शेष तो यह कि इस आलेख में अपनी गणना से हम यह सिद्ध कर ही चुके हैं कि वर्ष 2020 से वैज्ञानिकों को इस दिशा में विशेष सफलता मिल सकेगी|
मिलते हैं अगली पोस्ट के साथ| ............ जय श्री राम|
कल बहुत शोर पैदा हुआ कि वैज्ञानिकों ने 'ब्रह्म कण' की खोज कर ली है| आज के सभी अखबार इसी से रंगे पड़े हैं| बहुत उत्साह के स्वर में यह कहा जा रहा है कि यह सृष्टि ईश्वर ने नहीं बनायी है| यह मानव-निर्मित है| अब ज़रा यह देखें कि अंक ज्योतिष इस बारे में क्या दृष्टिकोण रखती है|
समस्त अंक ज्योतिष प्रकट रूप में 1 से लेकर 9 अंक में समाहित है या इन पर आधारित है| किन्तु यहाँ एक अद्भुत बात पर ध्यान दिया जाना अत्यंत आवश्यक है| इन 9 अंकों के अलावा एक और अंक होता है, जिसे अंक ज्योतिषीय गणनाओं में प्रायः प्रयुक्त नहीं किया जाता| यह अंक है-0 (शून्य)| अंक ज्योतिष में इसे 'महाशून्य' कहा जाता है| यह 'महाब्रह्मांड' का प्रतीक है| जब ब्रह्माण्ड से सम्बन्धित सूक्ष्म विश्लेषण की बात आती है तो इस महाशून्य की शरण में जाना पड़ता है| गणनाओं में इसकी स्थिति की विवेचना से बहुत कुछ विश्लेषित किया जा सकता है| इस 'ब्रह्म कण' की खोज की प्रक्रिया में भी इस महाशून्य की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है| यह महाशून्य सीधे-सीधे ईश्वरीय सत्ता से जोड़ता है| अंक 1 से 9 तक की भूमिका प्रायः जागतिक यानि पृथ्वी के सन्दर्भ में गणनाओं तक सीमित रहती है| इन 9 अंकों के साथ महाशून्य को संलग्न करते ही यह दायरा ब्रह्माण्ड-सन्दर्भ में परिवर्तित हो जाता है|
हम यहाँ हमारे पवित्र वेदों की बात नहीं ले रहे हैं, हालांकि हमारे वेदों ने तो यह सब कभी का कह रखा है, जो आज 'खोज लेने' का दावा किया जा रहा है| ईस्वी सन (यहाँ ऑनलाइन फोनेटिक टाइप की विवशता के कारण 'सन' का ह्लंत हम नहीं लिख पा रहे हैं, आशा है आप क्षमा करेंगे) की पहली सहस्राब्दी अंक 1 (सूर्य) की थी| उसके बाद दूसरी सहस्राब्दी अंक 2 (चन्द्र) की थी| इस दूसरी सहस्राब्दी के 7 वें और कुल जमा 197 वें दशक में इस परिकल्पना का जन्म हुआ| यहं अंक 7 व अंक 8 की उपस्थिति है| परिकल्पना के जन्म का वर्ष है-1964| इसका मूलांक बना-2, जिसका वृहदंक बना-20| अब ध्यान दिए जाने वाली बात यह है कि इन्हें महाशून्य से पहले एक क्रम में जमा लेने पर क्या रूप बनता है, देखिए-202 (0) यानि वर्ष 2020| इसका तात्पर्य यह हुआ कि जब वर्ष 2020 से आगे के समय यानी उसके बाद के वर्षों में इस दिशा ('ब्रह्म कण' को खोजने कि दिशा) में बड़ी सफलता मिल सकेगी| उसके पहले अंक 7 व अंक 8 की प्रधानता के कारण जो भी परिणाम पाने के दावे किए जाएँ, मगर वे सब के सब इस दिशा में 'लेशमात्र' ही सिद्ध होंगे, बड़े नहीं| अब एक और दिलचस्प बात भी कर ली जाए| वर्ष 2012 में इस मामले में खोज में 'कुछ प्रगति' की बात भी कहाँ से आई? तो देखिए कि हमने वर्ष की स्थापना के लिए जो दो अंक बनाये हैं, उनके अंतरिम स्वरूप में पहली सहस्राब्दी के प्रतिनिधि अंक १ को स्थान दीजिए, सीधे-सीधे वर्ष 20-1-2 यानि 2012 बनता है| इसी कारण इस वर्ष यह विशेष गतिविधि हुई है|
इस सारी प्रक्रिया में दिनांक 04-07-2012 की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता| इसका मूलांक 4 व भाग्यांक 7 हुआ| अंक 4 पितृ दोष (रक्त) का है और अंक 7 भी रक्त का है| अनुसन्धान और शोध के परिप्रेक्ष्य में अंक 7 अवधारणात्मक दुर्बलता या निष्फलता का है| अतः इन दोनों अंकों की युति इस परियोजना के परिणाम की सफलता के बारे में यह न्यूनता बताती है| अभी चलित का अंक है-2 व 7| इन स्त्री अंकों की अंक 4 व अंक 7 के साथ युति पूर्वोक्त निष्कर्षों के परिमाण में वृद्धि करती है| दिनांक 04-07-2012 को वार बुधवार था, जिसका अंक है-5| पूर्वोल्लेखित युतियों के साथ इसका युग्मन धुंध, भ्रम और अस्थिरता बताता है| अतः इस दिनांक को वैज्ञानिकों ने जिस सफलता की प्राप्ति कही है, वह भ्रम या अनिश्चय की स्थिति हो सकती है या आगे जाकर वैज्ञानिकों को अपनी इस सफलता की धरना या स्वरूप में परिवर्तन भी करना पड़ सकता है| इसलिए अभी की सफलता को कोई बहुत बड़ी या उल्लेखनीय मन लेना बहुत जल्दबाज़ी रहेगी| शेष तो यह कि इस आलेख में अपनी गणना से हम यह सिद्ध कर ही चुके हैं कि वर्ष 2020 से वैज्ञानिकों को इस दिशा में विशेष सफलता मिल सकेगी|
मिलते हैं अगली पोस्ट के साथ| ............ जय श्री राम|
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